वर्मा मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है, जैसे मैं किसी चट्टान से टकरा गया है। माया औरत है मगर चट्टान की तरह सख्त और अविचल । मैं मर्द ह, मगर छुई-मुई के पेड की भाति सकोच और झिझक से भरा हुअा। राय मेरे अफसर है, और मैं उन्ही के आफिस का एक कर्मचारी हू । अव यदि मैं खुल्लमखुल्ला माया से अपना सम्बन्ध स्थापित कर लेता है, तो सभवत मेरी नौकरी नहीं रहेगी । राय मुझे कभी नही वख्शेगे । यो वे एक खुश- अखलाक अफसर है । पर कोई कितना ही खुशअखलाक हो, अपनी पत्नी के जार को सहन नही कर सकता । मैं जानता हू, राय का चरित्र दृढ नहीं है । अनेक लडकियो से उनके सम्पर्क हैं। उनके सम्बन्ध में मैं बहुत-सी कहानिया सन चुका हूँ । आफिस के चपरासी से हैड तक उनकी रगीन कहानिया कहते-सुनते रहते है। पर उनसे किसी को कोई शिकायत नहीं, सब उनसे खुश है । वे जैसे खुश-अखलाक हैं वैसे ही उदार भी है। कितनी वार वे अपने मातहत लोगो का पक्ष लेकर ऊपर के अफसरो से भिड गए है। वेशक वे सीधे-सादे आदमी नहीं है । पर सीवा होना कोई अच्छी वात थोडे ही है। बेचारी गाये, जिनके सिरो पर लम्बे और पैने सीग होते है, केवल अपनी सीघाई के कारण ही कसाई की छुरी का शिकार बनती है। उन पर वे सीगो का प्रहार नहीं करती। राय न स्वय सीयेपन को पसन्द करते है न किसी की सीघाई की तारीफ करते हैं। माया से मेरी मुलाकात छ महीने से है। राय की मुझ पर सास कृपा रहती है। उन्होंने मुझे कठिनाइयो से उवारा है। मैं तो यहा तक
पृष्ठ:पत्थर युग के दो बुत.djvu/५२
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