३२ पत्थर-युग के दो वुत लिए भाभी ही का रिश्ता उन्होंने जोडा है-गौर इस भाभी के रिश्ते को निभाने के लिए उन्होने दत्त को बड़ा भाई मान लिया है। यद्यपि दत्त उनसे उम्र मे छोटे है । दत्त को इस नये रिश्ते से कुछ भी आपत्ति नहीं हुई। जब उन्होने ब्याह के बाद मुझे देखकर भाभी कहा था तो दत्त ने हंसकर कहा था, 'अच्छा रिश्ता जोडा तुमने राय, इसमे अच्छा सुभीता रहेगा। रेखा तुमसे अच्छी तरह बातचीत कर सकेगी। लेकिन अब मुझे भी तुम्हारे कान मलने का अधिकार प्राप्त हो गया है।' दोनो मित्र इसपर खूब हंसे थे। पाच साल तक वे वगवर हमारे घर अाते रहे। इस बीच उन्होने कोई अमर्यादित चेष्टा मेरे समक्ष नही की। पर उनकी प्रासो मे कभी-कभी एक ऐसी चमक अवश्य दीसती थी कि उसे देखकर मेरी आये झेप जाती थी। मेरे हृदय पर एक धक्का-मा लगता था और मै वहा सडी नही रह मकती थी। पर वह चमक, वह दृष्टि बडी ग्राकर्षक थी, बडी प्रभावशाली थी। मैं उससे डरती थी पर जब वे गाते, मै उनी चमक को एक बार फिर उनकी प्रामो में देखने की अभिलापा रखती रहती थी। और फिर मुझमे उसे ग्रास-भर देखते रहने की हिम्मत भी हो गई। कभी-कभी वे माया के साथ प्राते थे, परन्तु बहुवा अकेले। ऐसा भी हुया कि वे रात को पाए, दत्त उस समय घर पर न ये। वे बडी देर तक बैठे रहे । गपगप करते रहे। बातचीत उनकी बडी दिनचस्प होती थी। उनकी बाते सुनकर तपीयन ऊवती नहीं थी। कभी-कभी तो दिल मे गुर्द- गुदी होती थी । वाम र तप, नव बीच-बीच में वही चमक उनकी पालो मे दीव पटती थी। अब ज्यो-ज्यो दिन बीतते नाते ये पोर हमारा परिचय पुगना होता जाता था, उम वमक के साथ एक हाम्य उनके होठा पर पौर एक याचना उनकी दृष्टि में प्रकट होने लगी थी। म नहीं कह साती कि इन हान्य और याचना को देवार मन में सो निहारा उपन्न होती थी, वह कैनी थी-पर उमरा दतना प्रभातोपाट ही यानि बारम्बार देखने को मन होता पा। प्रब अजान ही म उनके माा पर प्रपोगरीर ।
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पत्थर-युग के दो बुत