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पत्थर-युग के दो बुत
२५
 

पत्थर-युग के दो वुत २५ है। उसके मन के हौसले बढ जाते हैं और शरीर मे शक्ति का ज्वार पा जाता है। इसी से औरत की मेरी नज़र मे वहुत कीमत है । मैं उसे मर्द की सबसे बढकर दौलत समझता हू, और अपनी पसन्द की औरत को खरीद लेने का कोई मौका चूकता नही हू। कीमत चुकाने मे कजूसी करता नही हूँ। पर मुश्किल यह है कि अच्छी औरत का मिलना मुश्किल है। विवाह के वोझ ने औरत को चकनाचूर कर दिया है। मेरा सम्बन्ध विवाहिता औरतो से भी है, अविवाहितारो से भी है। जो विवाहिता हैं वे विवाह से परेशान है। जो अविवाहिता हैं वे विवाह के लिए परेशान हैं। विवाह जैसे औरत के लिए एक मजबूरी बन गई है। विवाह होने से औरत की सार्थकता है-ऐसा सब मानते हैं। पर मैं तो यह देखता हू कि विवाह होते ही औरत खत्म हो जाती है । आप लोग, खासकर महिलाए, नाराज़ हो जाएगी मेरी वात सुनकर-पर मेरी खुली राय है कि विवाह होने पर औरत गवी हो जाती है । विवाह होते ही पहले उसे पति का, फिर उसकी गृहस्थी का और उसके बाद उसके वच्चो का वोझ ढोने मे ही अपनी सब जिन्दगी खत्म कर देनी पडती है। इमी काम मे उसकी समूची शारीरिक और मानसिक शक्ति खर्च हो जाती है। वह किसी काम की चीज़ नही रह जाती। उसका मव जादू खत्म हो जाता है। और वह एक दयनीय जानवर की भाति अपना शेप जीवन व्यतीत करती है, जहा उसका अपना कही कुछ नहीं होता। वह पति नामधारी एक स्वेच्छाचारी व्यक्ति की दुम बन जाती है। राई-रत्ती अपना समूचा रस, शृगार-माकपण और जादू वह उसी के चारो मोर वखेरते-बखेरते खोखली हो जाती है। और तव ग्राप देखिए, वह दुनिया की सबसे ज्यादा भट्टी और निकम्मी चीज़ रह जाती है कि जिसके मर जाने का अफसोस एक पालत् जानवर से अधिक नहीं होता। वडी कडवी और ग्रट- पटी लग रही होगी मेरी ये वाते सापको। पर यह मेरी निजी राय है। मेरे अपने विचार है। क्या जरूरी है कि अाप इनसे महमत हो, इन्हे पनन्द करे। अच्छा तो यही है कि आप इन्हे पढें ही नहीं । रेखा की बात कहता है। वह एक औरत ह, लावो मे एन । दरग