पत्थर-युग के दो बुत ? ? . अकेले ? भला कही दुनिया मे, लोक मे, परलोक मे, औरत अकेली रही भी है ? औरत क्या अकेली रहने को विधाता ने सिरजी है ज़रा मुझे भी झुला लो। यो प्यारे, प्रो साजन | इतने स्वार्थी तो न बनो। और यह क्या है क्या प्रलय हो रही है | शताब्दियो का समतल का उत्तुग हिमाचल गल-गलकर, जल-जलकर, नतल पर खिमका चला या रहा है । क्यो । किस लिए । नगराज का क्या पतन हो रहा है ? नही रे भाई, नहीं । भूतल पर पाकर उसने गगा का नाम पारग किया है। पतितो को पावन करने के लिए अपना पतन किया है। देखो तो, भगवान मत- भावन गगा की धार को अपने मस्तक पर ले रहे है । ग्ररी ग्रानो, अभागिनी नारियो | मरने से पहले एक बार इम सुरमुरि मे मज्जन कर ग्राम पाप-ताप हर हर ले जाएगे। पायो री, ग्रायो। हा-हा। सभी नदिया तो महागगा मे मिलती है । नदी ही त्या, नाले, गदे नाले भी मिलते हैं। मिलकर सब गा-जन हो जाते है। इक नदिया इक नाल कहावत, मैलो ही नीर भर्यो। ज्योही दोनो एकवरन भए, सुरमरि नाम पर्यो । अरी, सुरसरि नाम पर्यो। प्रद्युम्न जग गया है । वह रो रहा है-टेटी कहा है ? दैदी कहा है। चल वेटा, डैडी को ले पाए। आज ही का है मिलन-दिन, याज ही उनकी विदाई। चलो पटा चलो। वस वक्त भी हो गया है । हा, योही बनो । उपडे बदलने का समय अव कहा है ? ऐसे ही चलो।" उन्ही का तो यह कटस्वर है ? सुन रही ह सुन रहीद, रेवा, जा रहा है । मैं जा रहा हूँ।" जाग्रो न्वामी, तुम्हे जाना होगा, और न रहना होगा। सारा घर मैने गगा-जल ने धोया है, तुम्हारे लिए, तुम्हाबान ने। लेकिन इस मि पर कहीं न कहीं तुम्हारी चरण-रज होगी ही-दनी न घर के फर्श को चूमती फिर रही है । नौकर-चार रो रहे हैं। प्रयन न
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