पत्थर-युग के दो बुत वे लोग चाहते है कि म हत्या के अभियोग से मुक्त हो जाऊ, पर यह में कैसे चाह सकता हूँ इतना भारी मैने समाज का उपकार किया है, और अपने चरित्र को, प्रतिष्ठा की रक्षा की है, परन्तु कानून को अपने हाथ में लिया है। मेरे लिए वह आवश्यक था, अनिवार्य था। अव कानून अपना काम करे । मुझे उनका दण्ड दे । मैं नहीं चाहता कि लोगो के सामने यह उदाहरण कायम हो जाए कि कानून को हाथ मे लेना व्यक्ति के लिए उचित है, और अन- धिकारी लोग ऐसा करे। असावारण काम असाधारण पुरुप ही कर सकते है, जिनमे असा- वारण क्षमता, शक्ति और धैर्य हो । वही असाधारण काम मैंने किया है। रमी मे मुझे अपने ऊपर, अपने काम पर गर्व है। आप कह सकते हैं कि मैंने मानून के विरुद्ध काम किया है, पर ग्राप यह नहीं कह सकते कि मैने नीति- विन्दु काम किया है। अाप मुझ पर कायरता का अारोप भी नही लगा नाते, जो कि एक अत्यन्त घृरिणत यारोप है । वस, यही मेरे लिए यथेप्ट है। पाप कहेगे, रेणा का भी तो दोप है। वह भी तो वासना के बहाव में बह गई। उसने भी तो कुलटा का आचरण किया, पति से विश्वासघात दिया, पर-पुस्प को अपना देह सौंप दिया। उसे क्यो नहीं मार डाला ठीक है, पाप शायद यही करते। राय को मार डालने का शायद आपको साहम न होता। पर मैंने ऐसा नहीं किया। रेमा पय-भ्रप्ट हो गई। कुलव की मर्यादा उसने भग की, मेरे साथ विश्वासघात किया। मब ठीक है। उसके विरुद्ध ऐमे ही पौर भी आरोप लगाए जा मकते है, तो नाधारण नहीं है । ममाज और गृहस्थ-मं की पवित्रता को भग करने की दृष्टि से वे राय के अपराव से कम नहीं है। मैंने रेमा को गोनी नहीं मागे । उसे गपनी मब मम्पत्ति की स्वामिगी बना दिया। परन्तु प्रापने देना नहीं, वह दण्ड मे वचित नहीं रही। उसने अपने पापको स्वय ही दण्ड दे डाला। ऐसा दण्ड तो मृत्यु ने नी बहुत अधिक मीपण और काटकर हे । म घोपित करता हनि उमे जीवित रहने दिया जाए-मब सुग-गुपि- ?
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