पत्थर-युग के दो वुत १७५ कह रहा है-अरे, वडे गधे, लानत है तुझपर । तू इतना बडा ग्रादमी है तभी इस हरामजादी को सजा-बजाकर ले जा रहा है, हँसते-हंसते वाते करता हुआ । अरे, हम छोटे प्रादमी यह सब वर्दाश्त नही कर सकते। म होता तो गडासे से सिर काट डालता छिनाल का । छिनाल औरत का भी भला क्या पतियाव! सब कुछ उसकी पाखे कह रही हैं और मैंने उससे ग्रावे चुरा ली है। बूढा माली दर्द-भरी नज़र से मेरी ओर देख रहा है। मव कुछ जानते ये पर जिसे जानना चाहिए था-वह मैं नही जानता था। यह बाजार आ गया। कनाट प्लेस। पहले जव रेसा यहा मेर TIT आती थी दर्जनो चीजे खरीदने का प्रोग्राम बनाती हुई, तो स्तिनी ग्रन्थी लगती थी तब | किन्तु अाज तो वह चुप है। अजी, रेपा रहा है यह यह तो रेखा की लाश है। "चलो रेखा, चलो बच्चे, प्रायो, खरीदो अपनी पसन्द की । और रेखा, ज़रा इघर तो आयो । एक चीज मैंने पनन्द की है तुम्हारे लिए। देखोगी तो खुश हो जानोगी।" रेखा है कि उसके हाठ नख रट है । माया की पुतलिया घूम रही हैं । वह डर रही है। और मैन एक होर की माटी खरीदकर उसकी नाजुक उगली मे डाल दी । लो साहब, मेरी नगारहा रही है रेखा से। खुशिया मनायो, वगले बजायो। अाग्रो ग्राप नर ना प्रायो, मिठाइया खाओ। खुशी का मौका है, ग्रानन्द का प्रबनर है । सगाई हो रही है मेरी रेखा से । क्यो? ग्राप चौक क्यो गए क्या मैं व्ढा हा गया है? नीतान चालीस का भी नहीं हुग्रा? रेखा तीस के पट में है। हम दानो वामन । भरपर है । वरावर की जोडी है। हमारी सगाई या टीर नहीं है हँसते है । हमिए साहव, हँसिए, यह हँसने ही ना नौरा । नान रहा है । हा-हा-हा-हा। लेक्नि रेखा चुप है शरमा रही है,अपवा डर र रही हगनतीन-न्दी दुलहिन की भाति । न जाने क्यो पिर निर ने चार वलन तो। जात्रा ?
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