पत्थर-युग के दो बुत . 1 "तुम उत्तेजित होगे तो मैं कुछ न कर सकूगी।' "यह भी ठीक है। लेकिन मैं मैं सोना चाहता हू।" "पर अभी मेरी वात पूरी नहीं हुई।" "तो क्या हर्ज है, अभी जिन्दगी भी तो पूरी नहीं हुई।" और मैं लड- खडाते पैरो से चलकर शयनागार मे पड गया ह । खूव सोया हू । और अभी आख खुली है । तबीयत तो मेरी ठीक है, ऐसा प्रतीत होता है, रेखा डर गई है। पर उसे मुझसे डरने की क्या जरूरत है ? और वह वात ही मुझसे क्या करेगी ? अब बातचीत तो अपने-आप ही हो चुकी है। अब तो, अब तो बस मुझे आखिरी फैसला करना है। लेकिन क्या कारण है कि मैंने राय के सम्बन्ध मे अभी तक कुछ विचार नही किया? मुझे देखना होगा कि वह कहा तक अपराधी है । क्या राय ने रेखा को कुमार्ग पर नही डाला | क्या रेसा स्वय चलकर राय के पास गई ? परन्त इन बातो की मीमासा करने का अव समय कहा है | किन्तु अब मुझे बहुत-सी पुरानी बातें याद अा रही हैं, और कुछ बातो को तब नहीं समझ रहा था, अव समझ रहा हूँ। राय बडा चालाक और धूतं है। मेरी रेखा को उसने छीना है । वह दण्ड का पात्र है । यदि में उसे गोली से उडा दू, तव तो दण्ड रेसा को ही मिलेगा। वह निराधार रह जाएगी। मेरी फासी पडने के बाद उसका वह सहारा छिन जाएगा जिसके लिए उसने अपना सतीत्व भग किया। मुझे मब बातो पर पूरे ध्यान से विचार करना पडेगा। रेसा ने यह तो कह ही दिया कि वह राय को प्यार करती है। न करती तो भी में जान गया था कि वह मुझमे विच्छेद करके उससे शादी करने को वेचैन है। म उनके मुह मे यह बात सुन सका । अच्छा ही हुग्रा कि मैंने उस पर अाक्रमण नहीं किया, यहा चला ग्राना। ईया-द्वेप से क्या लाभ है ? मैं एक बार राय को पछ ल कि वह रेखा से शादी करने को तैयार भी है यदि है तो म वही अपने को गोली मारकर खत्म कर नगा और रेवा गौर उसका गला साफ कर दगा, पर यदि उनने इन्कार किया तो उनी की मार दागा। .
पृष्ठ:पत्थर युग के दो बुत.djvu/१७०
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१६४
पत्थर-युग के दो बुत