पत्थर-युग के दो वुत १६३ - 211 रेखा ने चाय का दूसरा प्याला दिया। इसे मैने कडवी दवा की भाति एक ही सास मे पी लिया। प्याला खाली करके कहा, "पौर दो।" और मेरी हंसी विखर गई है । रेखा का रग फक हो गया है । वह सन्देह भरी नज़र से मेरी ओर देखने लगी है। स्पष्ट ही उसकी आखो मे भय भरा हुआ है। वह शायद काप रही है । मैंने कहा, "तुम रेग्वा, मुझसे डरती हो', "मैं तुमसे कुछ बातें करना चाहती हूं।" "खूब बाते करो। लेकिन और पास खिसक ग्रायो। डगे मत ।" "सचमुच तुम मुझे डरा रहे हो।" अब फिर मेरी हँसी विखर गई । मैंने कहा "मेरा हाथ खाली है, फिर क्यो डरती हो? वह चीन तो दगत म ही खैर उन वातो को जाने दो। लेकिन वात कहो।" "मैं मैं वेवफा ह। " "वस “अव हम एकसाथ नहीं रह सकते।" "ठीक है। और ?" "तुम मेरे साथ कैसा बर्ताव करोगे यह बता दो। म सब-युट प्राप्त कर लूगी।" "वहुत गम्भीर वात है । पर मै कहता हहता है, तह मनन डरने की जरूरत नहीं है।" 'तो मै सव साफ-साफ बाते कह द।" "कह दो।" 'मैं राय को प्यार करती है।" मैं समन गया। ठीक है। लेकिन इतने जोर न . डालिंग । कोई सुन लेगा।" तुम मुझे तलाक दे दो। म उनने गादी नर ' शादी पी वात बहुत वदिवा ह । बाने ता, गहनाई व रहता । तो पिर" -
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पत्थर-युग के दो बुत
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