सुनीलदत्त | समभतो हो न, + 211 ? nic "दरवाज़ा बन्द करके क्या कर रहे थे?" "ही-ही-ही, अाराम कर रहा था। पाराम पाराम "लेकिन यह चोट कैसी है ? सारा सिर खून से भर गया है "खून से ? ठीक कहती हो तुम रेखा। मेरे जिस्म मे उन बहुत है।" और रेखा ने यत्न से खून धोया है, जरम साफ किया है, पट्टी पारी है । वही नर्म-गर्म हथेलिया है। वही चम्पे की कली के समान उगनिया है, वही लालसा से फूले हुए लाल-लाल होठ है। बडी तत्परता न, ममता ने पट्टी वाध रही है। भला इस प्रेम की पुतली पर कने गोली चलाई जा सकती । कैसे इसे मारा जा सकता है । कितने भोलेपन ने वान करती है। "चोट लगी कैसे?" "गिर गया मैं, अलमारी से टकरा गया।" वह पट्टी वाध रही है, और पूछ रही है- "कैसे टकरा गए "हो-ही, नशे के भोक मे मने नमना तुम हो । यानिान म ने तिवा, सिर टकरा गया।" "इतनी क्यो पीते हो तुम 'बेशक दुरी बात है । है न ।' "र, अव ज़रा हाय-नह दो लो। वाप पार है।" "तो मैं नी तैयार ह, वन चटनी बनानाम हो ।'- 6 ?" ,
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