? 1 ? त्यर-युग के दो वुत १५५ "नही, अभी दो।" “आया, वह बक्स खोल लो। यह चाभी लो। वेवी को उसके खिलौने वगैरह दे दो। मैं सोऊगा।" "मेम साहब आएगी तो "उनसे कह देना, मुझे डिस्टव न कर । मैं सोना चाहता ह । और मैंने शयनागार मे आकर भीतर से कुण्डा बन्द कर लिया ग्रव मैं अकेला हू । कोई मुझे देख नहीं रहा। हा, रखा अब तुम कहा तुम कहा हो अरे बोलो। वोलो रेखा । कहा छिपी हो डालिंग । कमग्रान य नट- खट गर्ल, कमॉन । हा-हा, उस पालमारी म शराब है। देखू ? हा है। लेकिन वर्फ नही है। न मही। पानी ना है पिग्रो दत्त, बहुत दिन से तुमने नही पी । ऐ, कौन है यह, किसन कहा पिनो दत्त, पियो, पिरो । अरे मैं पी रहा हू । अधाधुध पी रहा है। यह क्या क्या मर मिरम आग लग गई ? इतनी लपटे कैसे उठ रही है । पोप कितनी गर्मी है । यह कमीज़ अब वर्दाश्त नही होती। मैन कमीज़ फाड डानी है। रता रेखा, निकल ग्रामो, उस आलमारी के पीछे क्यो छिपी हा प्रा' नी गर्ल । हा-हा-हा-हा । पिनो दत्त पियो । पी रहा है। बहुत दिन बाद । माफ करना रेखा, ग्राज तुम्हारे स्वास्थ्य निए पी रहा है। सागति तुम भी पीती होती । पियो न जरा-मी । दारमानी क्या हा ग्रह मना सुनो-और मै रेखा को ग्रालिंगन करन का दाना हाय पं नाकर बेट है। पर यह तो लैप-स्टेड है, रेखा नहीं है । धनेग की। एनानी का नगा । पिनो दत्त, पिरो, और पीया । लामो फिर, मजा पा रहा है, बहुत दिन बाद पी रहा है । दटा नीटा जहर है । पर ये लाल कुत्ते इतने कहा न या परा है कुत्ते साले। रेखा, देख रही हो न तुम 'वाह हननी हो ग न न न गया ? माना 77
पृष्ठ:पत्थर युग के दो बुत.djvu/१६१
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
पत्थर-युग के दो बुत
१५५