११२ पत्थर-युग के दो बुत ?" " मैं क्या करूगा, जानती हो "क्या करोगे? "जान दे दूगा। गोली मार लूगा।" "राय ने तो गोली नही मारी, जान नही दी।" "वडा सख्तजान है राय । पर मैं तुम्हारे बिना न रह सकूगा रेखा । "राय भी, सभव है, माया से ऐसा ही कहते रहे हो "लेकिन मैं तो तुम्हे बहुत प्यार करता हू रेखा।" "राय शायद माया को प्यार नही करते थे।" "शायद नही करते थे।" "तो बाईस बरस तक क्या करते रहे ? दोनो का ससार कैसे चलता रहा ? विना प्यार के भी कही औरत मर्द रह सकते है "नहीं रह सकते रेखा, इन दिनो मैं इस बात को खास तौर पर देन 21 रहा है।" "इन दिनो क्यो" "पता नहीं, तुम्हे क्या हो गया है । गुमसुम रहती हो । पहले की तरह हँसते हुए तुम्हारे होठ फडकते नही। तुम्हारे गालो मे गढे पडते नही। ग्रामो में चमक आती नहीं । जव पास पाती हो तो पास पाते-आते रह जाती हो। तुम्हे देखकर मेरा दिल उचलता है, पर जैसे कोई उसे दबोच डालता है। क्या तुम इन सब परिवतनो को नहीं देसती हो?" "नहीं, मैं तो नहीं देसती।" "तो तुम कहना चाहती हो, तुम वही हो जो पहले थी, जब व्याकर - . पाई थी?" "तुम क्या समझते हो, में बदल गई है?" जरूर बदल गई हो, वरना इतनी बातचीत हो पर भी तुम वही सडी रहती ? मेरे गले में न कल जाती? तीन दर्जन चुम्बन तटातः अक्ति न कर देती?" "तम ममन्ते हो, म वही व्याह की नवेती पनी र??"
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पत्थर-युग के दो बुत