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पत्थर-युग के दो बुत
 

१०४ पत्थर-गुग के दो बुत (4 "यह कि विवाह के बाद हिन्दु पति का स्त्री पर एकान्त स्वामित्व हो जाता है । और पनि मृत हो या जीवित, स्त्री वाग्दत्ता हो या शिवाहिता, हर हालत मे उसे मन-वचन-कर्म से उनी पति के पति मया अनुपित, अनुप्राणित और पात्मापित रहना पडेगा।" 'और पति ? क्या पति पत्नी के प्रति गनुबन्धित नही होगा?" "जी नहीं, हिन्दूधर्म पति को पी के पति अनुवन्ति नहीं करता। हिन्द-चर्मानुबन्धन मे पति एक या प्रनेक इमी प्रकार मे पूर्णानुपन्धित पनिमा मते हुए भी सथा स्वतनरूप मे मग या प्रोप मनगिनत पनिका पिना पानी की समीति के रग माता है । यहा तक कि वह वेश्या पार भिसारिणी स्तियो से भी मुक्त सहवास कर मकता है।" पापि IITहै। गाजात की निया भता यह पीकार कर पार प्रा तो हारा भीमेपन गरि पिया पराई THE जा सकता। और वे जब चाह तभी विच्छेद कर मरा 1 ? ।। 4.1, कानून की ही परामात म माया न तलाक दे दिया litt litra," पदाम्पत्य जग करक?" पी. सावन मार्ग नरकी का भी प्राकर-मा चमत्कार हा निस्टर दन, मटी ने माना पिया प्रगती यादगा किन घा तुम रहमते हा-दम माम भ म दिपहा दोप-निदारी प्रग-मग यारया है। दोरया प्राय ना हल्का-मागे हाता है-द भी गहरी है। गनी 3 के प्रायन तीनदीदी नानी।" न २ नर नारद मान दुरित, CHHAP दन दान- ननम्नाप • Iदा निता। उन्हा Ift EEP I