बउमचरित (5., 1-1116,6- 13 पुणु वसन्तमालाएँ वुत्तु 'णउ तेरउ । एउ सबु फलु एयहाँ गम्भहाँ केर' ॥१ संणिसुणेवि विगयराउ भणइ 'ऍउ गब्भहों दोसु ण संभवई' ॥२ 'जइ घोसइ 'होसइ तणउ तउ ऍहु चरिम-देहु रणे लद्ध-जउ ॥३ पइँ पुष-भवन्तरे सइँ करेंण जिण-पडिम सवत्तिहे मच्छरेण ॥४ परिषित्त पत्त 'तं एहु दुहु एवहिं पावेसहि सयल-सुहु ॥५ गउ एम भणेप्पिणु अमियगइ ताणन्तरे दुकु मयाहिवइ ॥६ बिहुणिय-तणु दूरुग्गिण्ण-कम सणि असणि णाइँ जमु काल-सम् ॥५ ॥ कुञ्जर-सिर-रुहिरारुण-णहरु कीलाल-सित्त-केसर-पसरु ॥८ अइ-वियड-दाढ-फाडिय-चयणु रतुप्पल-गुज-सरिस-णयणु ॥९ खय-सायर-रर्व-गम्भीर-गिर लफूल-दण्ड-कण्डुइय-सिरु ॥ १० ॥ घत्ता॥ ते पेक्वेवि हरिणाहिवइ अञ्जण स-मुच्छ महियलें पडइ । विज्जा-पाणऍ उप्पऍवि आयासें वसन्तमाल रडइ ॥ ११ [८] 'हा समीर पवणञ्जय अणिल पहाणा । हरि-कियन्त-दन्तन्तरे वट्टा अञ्जणी ॥ १ हा कम्मु काइँ किउ केउमइ खलें मुइय लहेसहि कवण गइ ॥२ हा ताय महिन्द मइन्दु धरें सुं-पसण्णकित्ति पडिरक्स करें ॥३ हा मायरि तुहु मि ण संथवहि मुच्छाविय दुहिय समुत्थर्वहि ॥ ४ गन्धबहाँ देवहाँ दाणवहाँ विजाहर-किण्णर-माणवहाँ ॥५ जक्खहाँ रक्खहों रक्खहों सहिय णं तो पञ्चाणणेण गहियं ॥६ तं णिसुणेवि गन्धवाहिवइ रणे दुजउ पर-उवयार-मइ ॥७ 'मणिचूड रयण,डहें दइउ पश्चाणणु जेत्थु तेत्थु अइउ ॥८ अंडाव सावउ होवि थिउ हरि पाराउट्ठउ तेण किउ ॥९ 7. 1 तड तणउ. 2A चरम'. 3 4 ते. 4 4 कालदुकालसमु. 5A °जगुजणवणु. 6PS °सरि .75 गंगूल'. 8 विजापाण. 8. 1 पहंजण. 2 A अंजण. 3 SA काई कंमु. 4 P सुमुरछहहि, समुन्छवाह, सु. हुवाहि. 54 वहिय. 6 PS रयणचूडहि, A रयणचूडहो. [७] आस्मीपीगत् ( ? ) गृहागणे निक्षिप्ता. २ रुधिरु. [८]हे प्राता. २ न संबोधयसि. १ भो राक्षसयुकाः राक्षसाः (:). ४ सजी. ५- पर वापदो बभूव.
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