०२,0811001-4] सत्तरहमो संघि भहुको वि पडिच्छिर ॥घत्ता॥ णिबट्टिय-सिरु सोणिय-धारच्छलिय-तणु । सिन्दूरारुणु फग्गुणै णाइँ सहसकिरणु ॥१० लक्सिजइ दारुणु 8 10 कत्थ ई मत्त-कुखरा जीविएण चत्ता । कसण-महाघण ध दीसन्ति धरणि-पत्ता ॥१ कत्थ इ स-विसाणइँ कुम्भयलइँ णं रणवहु-उक्खलइँ स-मुसलई ॥२ कत्थ इ हय करवालंहिँ खण्डिय अन्त-ललन्त खलन्त पहिण्डिय ॥३ कत्थ इ छत्तइँ हयइँ विसालई णं जम-भोयणे दिण्णइँ थालई॥४ कत्थ इ सुहड-सिराइँ पलोट्टई णाइँ अ-णालइँ णव-कन्दोट्टई ॥ ५ कत्थ इ रह-चक्कइँ विच्छिण्ण कलि-कालहों आसण व दिण्णइँ॥६ कत्थ वि भडहों सिवङ्गण ढुक्किय 'हियवउ णाहिँ' भणेवि उढुकिय ॥७ कत्थ वि गिडु कवन्धे परिट्ठिउ णं अहिणव-सिरु सुहड्डे समुट्ठिउ ॥८ कत्थ इ गिढ़े मणुसु ण खद्ध वाणेहिँ चक्षुहिँ भेउ ण लद्धउ ॥ ९ ॥ धत्ता॥ कत्थ इ र-रुण्डेंहिँ कर-कम-तुण्डेंहिँ समर-वसुन्धार भीसणिय । वहु-खण्ड-पयारेंहिँ णं सूआरेंहिँ रइय रसोइ जमहों तणिय ॥ १० [१४] तहिं तेहएँ महाहवे किय-महोच्छवेहि । कोकिउ एकमेकु लङ्केस-वासवेहि ॥१ 'उरें उरें सक सक परिसकहि जिह गिट्ठविउ मालि तिह थकहि ॥२ हउँ सो रावणु भुवण-भयङ्कर सुरवर-कुल-कियन्तु रणे दुद्धरु' ॥३ तं.णिसुणेवि वलिउ आँखण्डलु पच्छायन्तु सरेंहिँ णह-मण्डलु ॥४ दहमुहो वि उत्थरिउ स-मच्छरु किउ सर-जालु सरेंहिँ सय-सकर॥५ तो एत्यन्तरे हय-पडिवक्खें सरु अग्गेउ मुकु सहसक्खें ॥ ६ 20 . 25 10 परिथिरु. 13. 1 Ps mostly read कस्थ वि. 2 P करवालिहि, s करवालिहि. 3 The por- tion from a Perate up to fire *° in line 8 is nissing in A. 4 Psg. 5 हे. 14. 18 reads gate in the beginning of this stanza, 2 A3 3 BP सुरवल, सुरवल.4A आईडलु. .
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