यह पृष्ठ प्रमाणित है।



 
१४.
सीख न दीजे वानरा

"उपदेशो हि मूर्खाणां प्रकोपाय न शान्तये"


उपदेश से मूर्खों का क्रोध और भी भड़क
उठता है, शांत नहीं होता।


किसी पर्वत के एक भाग में बन्दरों का दल रहता था। एक दिन हेमन्त मास के दिनों में वहां इतनी बर्फ पड़ी और ऐसी हिमवर्षा हुई कि बन्दर सर्दी के मारे ठिठुर गए।

कुछ बन्दर लाल फलों को ही अग्नि-कण समझ कर उन्हें फूकें मार-मारकर सुलगाने की कोशिश करने लगे।

सूचीमुख पक्षी ने तब उन्हें वृथा प्रयत्न से रोकते हुए कहा—"ये आग के शोले नहीं, गुञ्जाफल हैं। इन्हें सुलगाने की व्यर्थ चेष्टा क्यों करते हो? अच्छा तो यह है कि कहीं गुफा-कन्दरा देखकर उसमें चले जाओ। तभी सर्दी से रक्षा होगी।"

बन्दरों में एक बूढ़ा बन्दर भी था। उसने कहा—"सूचीमुख! इनको उपदेश न दे। ये मूर्ख हैं, तेरे उपदेश को नहीं मानेंगे, बल्कि तुझे पकड़कर मार डालेंगे।"

(८२)