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मित्रभेद]
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हो गया तो हम क्या करेंगे? सच तो यह है कि तेरे जैसा नीच स्वभाव का मन्त्री कभी अपने स्वामी का कल्याण नहीं कर सकता। अब भी कोई उपाय है तो कर। तेरी सब प्रवृत्तियाँ केवल विनाशोन्मुख हैं। जिस राज्य का तू मन्त्री होगा, वहाँ भद्र और सज्जन व्यक्तियों का प्रवेश ही नहीं होगा।

अथवा, अब तुझे उपदेश देने का क्या लाभ? उपदेश भी पात्र को दिया जाता है। तू उसका पात्र नहीं है। तुझे उपदेश देना व्यर्थ है। अन्यथा कहीं मेरी हालत भी सूचीमुख चिड़िया की तरह न हो जाय!

दमनक ने पूछा—'सूचीमुख कौन थी?'

करकट ने तब सूचीमुख चिड़िया की यह कहानी सुनाई—