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मित्रभेद]
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जा, मैं अभी अपनी चोंच से पानी बाहिर निकाल कर समुद्र को सुखा देता हूँ।"

टिटिहरी—"समुद्र के साथ तेरा वैर तुझे शोभा नहीं देता। इस पर क्रोध करने से क्या लाभ? अपनी शक्ति देखकर हमें किसी से वैर करना चाहिये। नहीं तो आग में जलने वाले पतंगे जैसी गति होगी।"

टिटिहरा फिर भी अपनी चोंचों से समुद्र को सुखा डालने की डींगें मारता रहा। तब, टिटिहरी ने फिर उसे मना करते हुए कहा कि जिस समुद्र को गंगा-यमुना जैसी सैंकड़ों नदियाँ निरन्तर पानी से भर रही हैं उसे तू अपने बूंद-भर उठाने वाली चोंचों से कैसे खाली कर देगा?

टिटिहरा तब भी अपने हठ पर तुला रहा। तब, टिटिहरी ने कहा—"यदि तूने समुद्र को सुखाने का हठ ही कर लिया है तो अन्य पक्षियों की भी सलाह लेकर काम कर। कई बार छोटे २ प्राणी मिलकर अपने से बहुत बड़े जीव को भी हरा देते हैं; जैसे चिड़िया, कठफोड़े और मेंढक ने मिलकर हाथी को मार दिया था।

टिटिहरे ने पूछा—"कैसे?"

टिटिहरी ने तब चिड़िया और हाथी की यह कहानी सुनाई—