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[पञ्चतन्त्र
 


'प्रत्युत्पन्नमति' ने भी उसकी बात का समर्थन किया। उसने कहा—"परदेस में जाने का डर प्रायः सबको नपुँसक बना देता है। 'अपने ही कूएँ का जल पीयेंगे'—यह कह कर जो लोग जन्म भर खारा पानी पीते हैं, वे कायर होते हैं। स्वदेश का यह राग वही गाते हैं, जिनकी कोई और गति नहीं होती।"

उन दोनों की बातें सुनकर 'यद्भविष्य' नाम की मछली हँस पड़ी। उसने कहा—"किसी राह-जाते आदमी के वचनमात्र से डर कर हम अपने पूर्वजों के देश को नहीं छोड़ सकते। दैव अनुकूल होगा तो हम यहाँ भी सुरक्षित रहेंगे, प्रतिकूल होगा तो अन्यत्र जाकर भी किसी के जाल में फँस जायंगे। मैं तो नहीं जाती, तुम्हें जाना हो तो जाओ।"

उसका आग्रह देखकर 'अनागत विधाता' और 'प्रत्युत्पन्नमति' दोनों सपरिवार पास के तालाब में चली गईं। 'यद्भविष्य' अपने परिवार के साथ उसी तालाब में रही। अगले दिन सुबह मछियारों ने उस तालाब में जाल फैला कर सब मछलियों को पकड़ लिया। इसीलिये मैं कहती हूँ कि 'जो होगा, देखा जायगा' की नीति विनाश की ओर ले जाती है। हमें प्रत्येक विपत्ति का उचित उपाय करना चाहिये।"

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यह बात सुनकर टिटिहरे ने टिटिहरी से कहा—मैं 'यद्भविष्य' जैसा मूर्ख और निष्कर्म नहीं हूँ। मेरी बुद्धि का चमत्कार देखती