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मित्रभेद]
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यह इसीलिये सोता है कि इन टांगों पर गिरते हुए आकाश को थाम लेगा। इसके अभिमान का भंग होना चाहिये।" यह सोचकर उसने ज्वार आने पर टिटिहरी के अंडों को लहरों में बहा दिया।

टिटिहरी जब दूसरे दिन आई तो अंडों को बहता देखकर रोती-बिलखती टिटिहरे से बोली—"मूर्ख! मैंने पहिले ही कहा था कि समुद्र की लहरें इन्हें बहा ले जायंगी। किन्तु तूने अभिमानवश मेरी बात पर ध्यान नहीं दिया। अपने प्रियजनों के कथन पर भी जो कान नहीं देता उसकी वही दुर्गति होती है जो उस मूर्ख कछुए की हुई थी जिसने रोकते-रोकते भी मुख खोल दिया था।"

टिटिहरे ने टिटिहरी से पूछा—"कैसे?"

टिटिहरी ने तब मूर्ख कछुए की यह कहानी सुनाई—