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[पञ्चतन्त्र
 

तक ले आओ, तो मैं उसको मारकर तुम्हारे पेट भरने योग्य मांस अवश्य तुम्हें दे दूंगा।"

शेर की बात सुनकर चारों अनुचर ऐसे शिकार की खोज में लग गये। किन्तु कोई फल न निकला। तब कौवे और गीदड़ में मन्त्रणा हुई। गीदड़ बोला—"काकराज! अब इधर-उधर भटकने का क्या लाभ? क्यों न इस ऊँट 'क्रथनक' को मार कर ही भूख मिटायें?"

कौवा बोला—"तुम्हारी बात तो ठीक है, किन्तु स्वामी ने उसे अभय वचन दिया हुआ है।"

गीदड़—"मैं ऐसा उपाय करूँगा, जिससे स्वामी उसे मारने को तैयार हो जायँ। आप यहीं रहें, मैं स्वयं जाकर स्वामी से निवेदन करता हूँ।"

गीदड़ ने तब शेर के पास जाकर कहा—"स्वामी! हमने सारा जङ्गल छान मारा है। किन्तु कोई भी पशु हाथ नहीं आया। अब तो हम सभी इतने भूखे-प्यासे हो गये हैं कि एक क़दम आगे नहीं चला जाता। आपकी दशा भी ऐसी ही है। आज्ञा दें तो 'क्रथनक' को ही मार कर उससे भूख शान्त की जाय।"

गीदड़ की बात सुनकर शेर ने क्रोध से कहा—"पापी! आगे कभी यह बात मुख से निकाली तो उसी क्षण तेरे प्राण ले लूँगा। जानता नहीं कि उसे मैंने अभय वचन दिया है?"

गीदड़—"स्वामी! मैं आपको वचन-भंग के लिए नहीं कह रहा। आप उसका स्वयं वध न कीजिये, किन्तु यदि वही स्वयं