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४.
बगुला भगत

उपायेन जयो यादृग्रिपोस्तादृङ् न हेतिभिः।


उपाय से शत्रु को जीतो, हथियारों से नहीं।

एक जंगल में बहुत-सी मछलियों से भरा एक तालाब था। एक बगुला वहाँ प्रति-दिन मछलियों को खाने के लिये आता था, किन्तु वृद्ध होने के कारण मछलियों को पकड़ नहीं पाता था। इस तरह भूख से व्याकुल हुआ-हुआ वह एक दिन अपने बुढ़ापे पर रो रहा था कि एक केकड़ा उधर आया। उसने बगुले को निरन्तर आँसू बहाते देखा तो कहा—"मामा! आज तुम पहिले की तरह आनन्द से भोजन नहीं कर रहे, और आँखों से आँसू बहाते हुए बैठे हो; इसका क्या कारण है?"

बगुले ने कहा—"मित्र! तुम ठीक कहते हो। मुझे मछलियों को भोजन बनाने से विरक्ति हो चुकी है। आज-कल अनशन कर रहा हूँ। इसी से मैं पास में आई मछलियों को भी नहीं पकड़ता।"

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