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मित्रभेद]
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बढ़ गया कि पिंगलक ने अन्य सब वनचारी पशुओं की उपेक्षा शुरू कर दी। प्रत्येक प्रश्न पर पिंगलक संजीवक के साथ ही एकान्त में मन्त्रणा किया करता। करटक-दमनक बीच में दख़ल नहीं दे पाते थे। संजीवक की इस मानवृद्धि से दमनक के मन में आग लग गई। वह संजीवक की इस वृद्धि को सहन नहीं कर सका।

शेर व बैल की इस मैत्री का एक दुष्परिणाम यह भी हुआ कि शेर ने शिकार के काम में ढील कर दी। करटक-दमनक शेर का उच्छिष्ट मांस खाकर ही जीते थे। अब वह उच्छिष्ट मांस बहुत कम हो गया था। करटक-दमनक इससे भूखे रहने लगे। तब वे दोनों इसका उपाय सोचने लगे।

दमनक बोला—'करटक भाई! यह तो अनर्थ हो गया। शेर की दृष्टि में महत्त्व पाने के लिये ही तो मैंने यह प्रपंच रचा था। इसी लक्ष्य से मैंने संजीवक को शेर से मिलाया था। अब उसका परिणाम सर्वथा विपरीत ही हो रहा है। संजीवक को पाकर स्वामी ने हमें बिल्कुल भुला दिया है। हम ही क्या, सारे वनचरों को उसने भुला दिया है। यहाँ तक कि अपना काम भी वह भूल गया है।

करटक ने कहा—"किन्तु, इसमें भूल किस की है? तूने ही दोनों की भेंट कराई थी। अब तू ही कोई उपाय कर, जिससे इन दोनों में बैर हो जाय।"

दमनक—"जिसने मेल कराया है, वह फूट भी डाल सकता है।"