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६.
स्त्री-भक्त राजा

"न किं दद्यान्न किं कुर्यात् स्त्रीभिरभ्यर्थितो नरः"

स्त्री की दासता मनुष्य को विचारान्ध बना देती है,

उसके आग्रह का पालन न करे

एक राज्य में अतुलबल पराक्रमी राजा नन्द राज्य करता था। उसकी वीरता चारों दिशाओं में प्रसिद्ध थी। आसपास के सब राजा उसकी वन्दना करते थे। उसका राज्य समुद्र-तट तक फैला हुआ था। उसका मन्त्री वररुचि भी बड़ा विद्वान् और सब शास्त्रों में पारंगत था। उसकी पत्नी का स्वभाव बड़ा तीखा था। एक दिन वह प्रणय-कलह में ही ऐसी रूठ गई कि अनेक प्रकार से मनाने पर भी न मानी। तब, वररुचि ने उससे पूछा—"प्रिये! तेरी प्रसन्नता के लिये मैं सब कुछ करने को तैयार हूँ। जो तू आदेश करेगी, वही करूँगा।" पत्नी ने कहा—"अच्छी बात है। मेरा आदेश है कि तू अपना सिर मुंडाकर मेरे पैरों पर गिरकर मुझे मना, तब मैं मानूंगी।" वररुचि ने वैसा किया। तब वह प्रसन्न हो गई।

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