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लब्धप्रणाशम्] [२०९

मज़ा चखाऊँगा, उन्हें मार डालूँगा।"

यह सुनकर शेरनी ने हँसते-हँसते कहा—"तू बहादुर भी है, विद्वान् भी है, सुन्दर भी है, लेकिन जिस कुल में तेरा जन्म हुआ है उसमें हाथी नहीं मारे जाते। समय आ गया है कि तुझ से सच बात कह ही देनी चाहिये। तू वास्तव में गीदड़ का बच्चा है। मैंने तुझे अपना दूध देकर पाला है। अब इससे पहले कि तेरे भाई इस सच्चाई को जानें, तू यहाँ से भागकर अपने स्वजातियों से मिल जा। अन्यथा वह तुझे जिंदा नहीं छोड़ेंगे।"

यह सुनकर वह डर से काँपता हुआ अपने गीदड़ दल में आ मिला।

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इसी तरह राजा ने कुम्भकार से कहा कि—तू भी, इससे पहले कि अन्य राजपुत्र तेरे कुम्हार होने का भेद जानें, और तुझे मार डालें, तू यहाँ से भागकर कुम्हारों में मिल जा।"

कहानी सुनाने के बाद बन्दर ने मगरमच्छ से कहा—"धूर्त्त! तूने स्त्री के कहने पर मेरे साथ विश्वासघात किया। स्त्रियों का विश्वास नहीं करना चाहिये। उनके लिये जिसने सब कुछ परित्याग दिया था उसे भी वह छोड़ गई थी।"

मगर ने पूछा—"कैसे?"

बन्दर ने इसकी पुष्टि में लंगड़े और ब्राह्मणी की यह प्रेम-कथा सुनाई—