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काकोलूकीयम्] [१६९

कलश को दूषित कर रहा है।"

बिल वाला साँप बोला—"तो क्या तू समझता है कि तुझे पेट से निकालने की दवा किसी को भी मालूम नहीं। कोई भी व्यक्ति राजकुमार को उकाली हुई कांजी की राई पिलाकर तुझे मार सकता है।"

पेट वाला साँप बोला—"तुझे भी तो तेरे बिल में गरम तेल डालकर कोई भी मार सकता है।"

इस तरह दोनों ने एक दूसरे का भेद खोल दिया। राजकन्या ने दोनों की बातें सुन ली थीं। उसने उनकी बताई विधियों से ही दोनों का नाश कर दिया। उसका पति भी नीरोग हो गया; और बिल में से स्वर्ण-भरा कलश पाकर गरीबी भी दूर हो गई। तब, दोनों अपने देश को चल दिये। राजपुत्र के माता-पिता दोनों ने उनका स्वागत किया।

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अरिमर्दन ने भी प्राकारकर्ण की बात का समर्थन करते हुए यही निश्चय किया कि स्थिरजीवी की हत्या न की जाय। रक्ताक्ष का उलूकराज के इस निश्चय से गहरा मतभेद था। वह स्थिरजीवी की मृत्यु में ही उल्लुओं का हित देखता था। अतः उसने अपनी सम्मति प्रकट करते हुए अन्य मन्त्रियों से कहा कि तुम अपनी मूर्खता से उलूकवंश का नाश कर दोगे। किन्तु रक्ताक्ष की बात पर किसी ने ध्यान नहीं दिया।

उलूकराज के सैनिकों ने स्थिरजीवी कौवे को शैया पर लिटा-