"बहुबुदिसमायुक्ताः सुविज्ञाना बलोत्कटान्।
शक्ता वंचयितुं धूर्त्ता ब्राह्मणं छागलादिव॥"
• • • •
धूर्त्ताता और छल से बड़े-बड़े बुद्धिमान् और
प्रकाण्ड पंडित भी ठगे जाते हैं।
• • • •
एक स्थान पर भित्रशर्मा नाम का धार्मिक ब्राह्मण रहता था। एक दिन माघ महीने में, जब आकाश पर थोड़े-थोड़े बादल मंडरा रहे थे, वह अपने गाँव से चला और दूर के गाँव में जाकर अपने यजमान से बोला—"यजमान जी! मैं अगली अमावस के दिन यज्ञ कर रहा हूँ। उसके लिये एक पशु दे दो।"
यजमान ने एक हृष्ट-पुष्ट पशु उसे दान दे दिया। ब्राह्मण ने भी पशु को अपने कन्धों पर उठाकर जल्दी-जल्दी अपने घर की राह ली। ब्राह्मण के पास मोटा-ताज़ा पशु देखकर तीन ठगों के मुख में लोभवश पानी आ गया। वे कई दिनों से भूखे थे। उन्होंने उस पशु को हस्तगत करने की एक योजना बनाई। उसके अनुसार उनमें से एक वेष बदलकर ब्राह्मण के सामने आ गया और बोला—
(१४८)