यह पृष्ठ प्रमाणित है।
३.
अति लोभ नाश का मूल
अतितृष्णा न कर्त्तव्या, तृष्णां नैव परित्यजेत्।
• • • •
लोभ तो स्वाभाविक है, किन्तु अतिशय
लोभ मनुष्य का सर्वनाश कर देता है।
• • • •
एक दिन एक शिकारी शिकार की खोज में जंगल की ओर गया। जाते-जाते उसे वन में काले अंजन के पहाड़ जैसा काला बड़ा सूअर दिखाई दिया। उसे देखकर उसने अपने धनुष की प्रत्यंचा को कानों तक खींचकर निशाना मारा। निशाना ठीक स्थान पर लगा। सूअर घायल होकर शिकारी की ओर दौड़ा। शिकारी भी तीखे दाँतों वाले सूअर के हमले से गिरकर घायल होगया। उसका पेट फट गया। शिकारी और शिकार दोनों का अन्त हो गया।
इस बीच एक भटकता और भूख से तड़पता गीदड़ वहाँ आ निकला। वहाँ सूअर और शिकारी, दोनों को मरा देखकर वह सोचने लगा, "आज दैववश बड़ा अच्छा भोजन
(१११)