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अङ्क २]
[दृश्य १
न्याय

और भाव प्रबल आदमी का ऐसी दशा में कितना पतन हो सकता है यह हम सब को अच्छी तरह मालूम है। यह सारा काम केवल एक मिनट में हुआ। बाक़ी काम ठीक वैसे ही हुआ, जैसे छुरा भोंकने के बाद आदमी मर जाता है या सुराही उलट देने से पानी गिर पड़ता है। आपको यह बतलाने की ज़रूरत नहीं। जीवन में कोई बात इतना दुखदाई नहीं है जितनी यह कि जो हो चुका वह मेटा नहीं जा सकता। एक बार जब चेक पर अंक बदल दिया गया और उसके रुपये मिल गए जो चार भयंकर मिनटों का काम था, तो चुप साध लेने के सिवा और क्या किया जा सकता था? लेकिन उन चार मिनटों में यह आदमी जो आपके सामने खड़ा है उस पिंजड़े में आकर फंस गया जो आदमी को बेदाग़ नहीं छोड़ता। उसके बाद के काम—उसका अपराध स्वीकार न करना, मुसन्ने को बदलना, भागने की तैयारी करना—इनसे यह नहीं सिद्ध होता कि उसने दृढ़ पापमय संकल्प से ये काम किए, जो मूल आचरण के फलमात्र थे। बल्कि इनसे केवल उसके चरित्र की दुर्बलता सिद्ध होती है। और यही उसकी विपत्ति का कारण है। लेकिन क्या हमें केवल इस लिये उसे पतित

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