यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
अङ्क २]
[दृश्य १
न्याय

वह ऐसी औरत हो जिसे हम प्यार करते हैं, तब क्या होगा? सोचिए, यदि मुलज़िम की दशा में आप होते, तो किस प्रकार का भाव आपके मनमें उत्पन्न होता? इस बात को सोचिए और तब उसके मुँह की ओर देखिए। वह उनके फिक्रों में और बेहयाओं में नहीं है जो उस औरत पर जिसे वह प्यार करता है पैशाचिक अत्याचार के चिह्न देखें और विचलित न हों। हाँ महाशयगण, देखिए उसके मुख पर दृढ़ता नहीं है। और न उसके चेहरे से पाप ही झलक रही है। यह एक ऐसा साधारण चेहरा है जो बड़ी आसानी से अपने भावों के वशीभूत हो जाता है। उसकी आँखों का हाल भी आपने सुना है। मेरे मित्र चाहे 'अजीब' शब्द पर हँस उठे, लेकिन दरअसल ऐसी अवस्थाओं में मनुष्यों की आँखों में जो चंचलता आ जाती है वह सिवाय "अजीब" के और कुछ नहीं कही जा सकती। याद रखिए, मैं यह नहीं कहता कि उसकी मानसिक दुर्बलता क्षणिक अंधकार की झलक मात्र नहीं थी जिसमें धर्म और अधर्म का ज्ञान लुप्त हो गया लेकिन मैं यह कहता हूँ कि जिस तरह कोई मनुष्य ऐसी परिस्थिति में आत्महत्या कर लेने पर आत्म

१२८