लेख बढ़ जाने के भय से उस विषय के श्लोक हम नहीं उद्धृत करते।
इस प्रकार बकते-झकते बहुत समय बीत गया । तब दमयंती को उसकी सखी ने समझाना और धैर्य देना आरंभ किया। कुछ देर तक इन दोनो की परस्पर बातें हुईं। अंत में सखी ने कहा—
स्फुटति हारमणौ मदनोष्मणा
हृदयमप्यनलङ्कृतमद्य ते;
भावार्थ—कामाग्नि से दग्ध होकर, हारस्थ मणि के फूट जाने से, देख, तेरा हृदय भी आज अनलंकृत (अलंकार- विहीन) हो गया।
दमयंती ने इसका और ही अर्थ किया । ऊपर श्लोक का पूर्वार्द्ध दिया गया है; नीचे उसी का उत्तरार्द्ध सुनिए । दमयंती ने कहा—
सखि, हतास्मि तदा यदि हृद्यपि
प्रियतमः स मम व्यवधापितः।
भावार्थ—यदि मेरा हृदय भी अनलंकृत (नल-विहीन) हो गया, अर्थात् यदि मेरे हृदय से भी मेरा प्रियतम दूर चला गया, तो फिर मैं मरी!
यह कहकर दमयंती मूच्छित हो गई । 'अनलंकृत' श्लिष्ट पद है । उससे अलंकार-विहीनत्व और नल-विहीनस्व-सूचक