यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
७४
नैषध-चरित-चर्चा
अपना जो मत* प्रकट किया है, उसका अनुवाद हम यहाँ
पर देते हैं। वह कहते हैं --
"इस प्रकार के काव्यों में वीर-रसात्मकता से संबंध क्रमशः छूटता गया है, और अच्छे-अच्छे शब्दों में शृंगार-रसात्मक वर्णन की ओर प्रवृत्ति बढ़ती गई है। कुछ दिनों में, धीरे- धीरे, भाषा ने अपनी सरलता को छोड़कर बड़े-बड़े शब्दों और दीर्घ समासों का आश्रय लिया है। अंत में यहाँ तक नौबत पहुँची है कि नवीन बने हुए सारे काव्य कृत्रिम शब्दाडंबर-मात्र में परिणत हो गए हैं। कविता का मुख्य उद्देश बाहरी शोभा, टेढ़ी-मेढ़ी अलंकार और श्लेषयोजना, शब्द-विन्यास-चातुरी इत्यादि समझा जाने लगा है। काव्य
- This latter (the other Kavyas) abandons more and more the epic domain and passes into the erotic, lyrical, or didactic descriptive field; while the language is more and more overlaid with turgid bom- bast, until at length, in its later phases, this artificial epic resolves itself into a wretched jingle of words. A pretended elegance of form and the performance of difficult tricks and feats of expression constitute the main aim of the poet; while the subject has become a purely subordinate consideration, and merely serves as the material which enables him to display his expertness in manipulating the language. History of Indian Literature.