सविस्तर वर्णन है। चिंतामणि-मंत्र का फल सरस्वती के मुख से श्रीहर्ष जी ने इस प्रकार कहाया है—
सर्वांगीणरसामृतस्तिमितया वाचा स वाचस्पतिः
स स्वर्गीयमृगीदृशामपि वशीकाराय मारायते ;
यस्मै यः स्पृहयत्यनेन स तदेवाप्नोति, किं भूयसा ?
येनायं हृदये कृतः सुकृतिना मन्मन्त्रचिन्तामणिः ।
भावार्थ—जो पुण्यवान पुरुष मेरे इस चिंतामणि मंत्र को हृदय में धारण करता है, वह शृंगारादि समस्त रसों से परिलु त अत्यंत सरस, वाग्वैदग्ध्य को प्राप्तकर के बृहस्पति के समान विद्वान हो जाता है; वह स्वर्गीय संदरी जनों को भी वश करने के लिये कामवत् सौंदर्यवान् दिखाई देने लगता है। अधिक कहने की कोई आवश्यकता नहीं; जिस वस्तु को जिस समय वह इच्छा करता है, उसके मिलने में किंचिन्मात्र भी देरी नहीं लगती।
इसी के आगे जो दूसरा श्लोक है, वह भी देखिए—
पुष्पैरभ्यच्य गंधादिभिरपि सुभगैश्चारुहंसेन मां चे-
निर्यान्ती मन्त्रमूर्ति जति माय मति न्यस्य मय्येव भक्तः ;
सम्प्राप्ते वरसरान्ते शिरसि करमसौ यस्य कस्यापि धत्ते
सोऽपि श्लोकानकाण्डे रचयति रुचिरान कौतुकं दृश्यमस्य ।
भावार्थ—सुंदर हंस के ऊपर गमन करनेवाली मंत्रमूर्ति मेरा पूजन, उत्तमोत्तम पुष्प-गंधादि से, करके और अच्छी