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चिंतामणि-मंत्र की सिद्धि

अवामा वामार्द्धे सकलमुभयाकारघटनाद्
द्विधाभूतं रूपं भगवदभिधेयं भवति यत् ।
तदन्तर्मन मे स्मर हरमयं सेन्दुममलं
निराकारं शश्वज्जप नरपते ! सिध्यतु स ते ।

(सर्ग १४, श्लोक ८५)
 

इस श्लोक से प्रथम मंत्रमूर्ति भगवान् अर्द्धनारीश्वर की उपासना का अर्थ निकलता है ; फिर, हल्ले खात्मक चिंतामणि- मंत्र सिद्ध होता है; तदनंतर चिंतामणि-मंत्र के यंत्र का स्वरूप भी इसी से व्यक्त होता है। चिंतामणि-मंत्र का रूप यह है—

ॐ हीं ॐ

"द्विधाभूतं रूपं भगवदभिधेयं"—से यंत्र का आकार सूचित किया गया है। भगवत् दो त्रिकोणाकृतियों का मेल ही यंत्र है ; यथा—





इसी के भीतर चिंतामणि-मंत्र लिखा जाता है । पारमेश्वर, मंत्रमहोदधि, शारदातिलक आदि तंत्रों में इसकी साधना का