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श्रीहर्ष के ग्रंथ

में स्पष्ट कहते हैं कि वह छद-नामक राजा की स्तुति है। छंद कहाँ का राजा था, इसका पता नहीं लगता । विजय से मतलब विजयचंद्र से जान पड़ता है । वह महाराज जयचंद का पिता था। अर्णव-वर्णन में समुद्र-वर्णन और नवसाहसांक-चरित में साहसीक राजा का वर्णन होगा, इसमें संदेह नहीं । शिवशक्ति- सिद्धि में शाक्त अथवा शैवमत की कोई बात अवश्य होगी । यदि यह ग्रंथ शाक्त-मतानुयायी है, जैसा कि इसके नाम से विदित होता है, तो इसको लिखने से श्रीहर्ष का शाकमत की ओर अनुराग होना सूचित होता है।



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