यहाँ तक श्रीहर्ष के विषय में आनुमानिक बातों का उल्लेख हुआ । अब उनके समय आदि के निरूपण से संबंध रखनेवाली कुछ विशेष बातें लिखी जाती हैं । राजशेखर सूरि नाम का एक जैन कवि हो गया है । उसका स्थिति-काल विक्रम संवत् १४०५ (१३४६ ईसवी) के आस-पास माना जाता है। उसका बनाया हुआ एक ग्रंथ प्रबंधकोश-नामक है। उसमें उसने लिखा है कि श्रीहीर के पुत्र श्रीहर्ष ने कान्यकुब्ज-नरेश गोविंदचंद्र के पुत्र जयंत- चंद्र की आज्ञा से नैषध-चरित बनाया। यदि यह बात सच है, तो श्रीहर्ष का जयचंद ही के आश्रय में रहना सिद्ध है। जयचंद और मुहम्मद ग़ोरी का युद्ध ११९५ ईसवी में हुआ था। अतएव श्रीहर्ष ईसा की बारहवीं सदी के अंत में अवश्य ही विद्यमान थे।
इंडियन ऐंटिक्केरी (१५-१११२) में राजा जयचंद का जो दान- पत्र छपा है, उसमें—
त्रिचत्वारिशद धकद्वादशशतसंवत्सरे आषाढे मासि शुक्लपक्षे सप्तभ्यां तिथौ रविदिने अंकतोऽपि संवत् १२४३ आसाढ-सुदि७ रवी—
इस प्रकार संवत् १२४३ स्पष्ट लिखा है । यह दानपत्र प्राचीन