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नैषध-चरित-चर्चा

ग्रंथों का भी नाम इतिहास-बद्ध किया गया है, तब राजतरंगिणी में इनका कहीं भी नाम न मिलने से यही प्रमाणित होता है कि ये काश्मीर के राजा श्रीहर्ष के रचे हुए नहीं हैं।

काश्मीर में अनंतदेव-नामक नरेश श्रीहर्ष के पहले हो गया है। राजतरंगिणी के सप्तम तरंग में, १३५ से २३५ श्लोकों तक, अनंतदेव का वर्णन है। उससे व्यक्त होता है कि यह राजा १०६५ ईसवी के लगभग, अर्थात् श्रीहर्ष से कोई २६ वर्ष पहले, विद्यमान था। जिस समय काश्मीर में अनंतदेव सिंहासनासीन था, उसी समय राजा भोज धारा में था। डॉक्टर राजेंद्रलाल मित्र[१] ने भोज का समय १०२६ से १०८३ ईसवी तक, अथवा दो-एक वर्ष इधर-उधर, स्थिर किया है। राजा भोज ने सरस्वतीकंठाभरण-नामक अलंकार-शास्त्र का एक ग्रंथ बनाया है। यह ग्रंथ उसी प्रसिद्ध मालवाधिप भोजदेव-कृत है। इस बात को सभी विद्वान् स्वीकार करते हैं। अब देखिए, सरस्वतीकंठाभरण में रत्नावली के कई श्लोक उदाहरणस्वरूप उद्धृत हैं। यदि रत्नावली काश्मीर-नरेश श्रीहर्ष-कृत होती, तो उसके श्लोक भोज-कृत सरस्वतीकंठाभरण में कदापि उद्धृत न हो सकते, क्योंकि भोजदेव के अनंतर श्रीहर्ष ने काश्मीर की गद्दी पाई थी। यदि भोज को मृत्यु १०८३ ईसवी में हुई मानी जाय, तो श्रीहर्ष के राज्य-प्राप्ति-काल (१०९१ और १०९७ ईसवी के मध्य) से थोड़ा ही अंतर रह जाता


  1. See Indo-Aryans, Vol. II.