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प्राक्कथन

कोई देवता, कोई राजा अथवा सद्वंशसंभूत कोई अन्य व्यक्ति, जिसका वर्णन किसी इतिहास अथवा किसी कथा में हुआ हो, अथवा न हुआ हो तो भी, उसके वृत्त का अवलंबन करके जो काव्य लिखा जाता है, उसे महाकाव्य कहते हैं। काव्य का नायक चतुर, उदात्त और अशेषसद्गुणसंपन्न होना चाहिए। महाकाव्य में नगर, पर्वत, नदी, समुद्र, ऋतु, चंद्र-सूर्योदय, उद्यान तथा जल-विहार, मधु-पान, रतोत्सव, विप्रलंभ-शृंगार, विवाह इत्यादि का वर्णन होना चाहिए। परंतु इनमें से कुछ न्यूनाधिक भी होने से काव्य का महाकाव्यत्व नष्ट नहीं होता। महाकाव्य रस, भाव और अलंकार-युक्त होना चाहिए और आठ से अधिक सर्गों में विभक्त होना चाहिए। अभी तक बाईस सर्ग से अधिक सर्गों के महाकाव्य नहीं देखे गए थे[]। परंतु अब हरविजय-नामक एक पचास सर्ग का काव्य बंबई की काव्यमाला (मासिक पुस्तक) में प्रकाशित हुआ है। महाकाव्यों के प्रति सर्ग में भिन्न-भिन्न प्रकार के वृत्त प्रयुक्त होते हैं; परंतु कभी-कभी दो-दो, चार-चार सर्ग भी एक ही वृत्त में निबद्ध रहते हैं। किसी-किसी सर्ग में अनेक वृत्त भी होते हैं। बहुधा प्रति सर्ग के अंत में दो-एक अन्य-अन्य वृत्तों के श्लोक होते हैं, और कभी-कभी ऐसे स्थलों में लंबे-लंबे वृत्त प्रयुक्त


  1. श्रीकंठ-चरित भी बहुत बड़ा काव्य है। उसमें २५ सर्ग हैं। परंतु उसके सर्ग इतने लंबे नहीं, जितने नैषध-चरित के हैं।