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श्रीहर्ष की कविता के नमूने

भावार्थ—बस, रहने दीजिए ; मेरा आदर हो चुका। बैठिए, आसन क्यों छोड़ दिया ? मैं जिस काम के लिये तुम्हारे पास आया हूँ, उस काम को यदि तुम सफल कर दोगी, तो उसी सफलता को मैं अपना सर्वोत्तम आतिथ्य समझूँगा।

नैषध के नवम सर्ग को कथा बहुत ही मनोहारिणी है। यह सर्ग सब सर्गों की अपेक्षा विशेष रम्य है। नल से दमयंती ने उनका नाम-धाम पूछा था। सो तो उसने बताया नहीं। आप एक लंबी-चौड़ी वक्तता द्वारा देवतों का संदेश घंटों गाते रहे। "वह तुमको अतिशय चाहता है; तुम्हारे विना उसकी यह दशा हो रही है; उसका तुम अवश्य अंगीकार करो"—इत्यादि अनेक बातें नल ने दमयंती से कहीं। इस शिष्टाचार-विघातक व्यवहार को देखकर दमयंती ने नल का बहुत उपालंभ किया और नाम-धाम इत्यादि बताने के लिये पुनः पुनः अनुरोध किया। परंतु नल ने एक न मानी। बहुत कहने पर आपने 'मैं चंद्रवंशांकुर हूँ' इतना ही बतलाया ; अधिक नहीं। नल कहने लगा—"मैं संदेश कहने आया हूँ। संदेश कहनेवाले दूत का काम 'हम', 'तुम' इत्यादि शब्दों से ही चल सकता है; नामादि बतलाने की आवश्यकता नहीं होती।" अपने कुल के विषय में नल ने इतना अवश्य कहा—

यदि स्वभावान्मम नोज्ज्वलं कुलं
ततस्तदुद्भावनमौचिती कुतः;