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नैषध-चरित-चर्चा
(१)
प्राक्कथन

"उदिते नैषधे काव्ये क्व माघः क्व च भारविः?"[]

संस्कृत के पाँच प्रसिद्ध महाकाव्यों के अंतर्गत नैषध-चरित के नाम से प्रायः सभी काव्य-प्रेमी परिचित होंगे। जिन्होंने संस्कृत का ज्ञान नहीं प्राप्त किया, जो केवल हिंदी ही जानते हैं, उनके भी कान तक नैषध का नाम शायद पहुँचा होगा। आज हम इसी काव्य के विषय की चर्चा करना चाहते हैं।

संस्कृत का साहित्य-शास्त्र दो भागों में विभक्त है—एक श्रव्य काव्य, दूसरा दृश्य काव्य। अभिनय अर्थात् नाटक-संबंधी जितने काव्य हैं, उनको दृश्य काव्य कहते हैं। परंतु उस विभाग से यहाँ हमारा प्रयोजन नहीं। हमारा प्रयोजन यहाँ श्रव्य काव्य से है।


  1. नैषध-काव्य के उदित होते ही कहाँ माघ और कहाँ भारवि? अर्थात् नैषध के सामने इन दोनों की प्रभा क्षीण हो गई।