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निर्मला
 


निर्मला--चन्दर! मुझे चिढ़ाओगे, तो अभी जाकर अम्माँ से दूँगी।

चन्द्र--तो चिढ़ती क्यों हो? तुम भी बाजे सुनना। ओहो, हो! अब आप दूल्हन बनेंगी! क्यों किशनी, तू बाजे सुनेगी न? वैसे बाजे तूने कभी न सुने होंगे।

कृष्णा--क्या बैण्ड से भी अच्छे होंगे?

चन्द्र--हाँ हाँ, बैण्ड से भी अच्छे, हजार गुने अच्छे, लाख गुने अच्छे। तुम जानो क्या? एक बैण्ड सुन लिया, तो समझने लगी, उससे अच्छे बाजे ही नहीं होते। बाजे बजाने वाले लाललाल बर्दियाँ और काली-काली टोपियाँ पहने होंगे। ऐसे खूबसूरत मालूम होंगे कि तुमसे क्या कहूँ। आतशबाज़ियाँ भी होंगी; हवाइयाँ आसमान में उड़ जायँगी; और वहाँ तारों में लगेंगी तो लाल, पीले, हरे, नीले तारे टूट-टूट कर गिरेंगे। बड़ा मज़ा आएगा।

कृष्णा--और क्या-क्या होगा चन्दर, बता दे मेरे भैया!

चन्द्र--मेरे साथ घूमने चल, तो रास्ते में सारी बातें बता दूँ। ऐसे-ऐसे तमाशे होंगे कि देख कर तेरी आँखें खुल जायँगी। हवा में उड़ती हुई परियाँ होंगी; सचमुच की परियाँ।

कृष्णा--अच्छा चलो; लेकिन न बताओगे तो मारूँगी।

चन्द्रभानु और कृष्णा चले गए; पर निर्मला अकेली बैठी रह गई। कृष्णा के चले जाने से इस समय उसे बड़ा क्षोभ हुआ। कृष्णा जिसे वह प्राणों से भी अधिक प्यार करती थी, आज इतनी