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सातवाँँ परिच्छेद
 


मुझे कुछ नहीं मालूम। मेरी आँखें फूट जायँ, अगर मैंने उसके विषय में मुँह तक खोला हो।

रुक्मि०— क्यों व्यर्थ कस्में खाती हो। अब तक तोताराम कभी लड़के से नहीं बोलते थे। एक हफ्ते के लिए मन्साराम ननिहाल चला गया था, तो इतने घबराए कि खुद जाकर लिवा लाए। अव उसी मन्साराम को वह घर से निकाल कर स्कूल में रक्खे देते हैं। अगर लड़के का बाल भी वाँका हुआ, तो तुम जानोगी। वह कभी वाहर नहीं रहा, उसे न खाने की सुध रहती है,न पहनने की— जहाँ बैठा, वहीं सो जाता है। कहने को जवान हो गया,पर स्वभाव बालकों का सा है। स्कूल में तो उसका मरन हो जायगा। वहाँ किसे फिक्र है कि इसने खाया या नहीं, कहाँ कपड़े उतारे, कहाँ सो रहा है। जब घर में कोई पूछने वाला नहीं, तो वाहर कौन पूछेगा? मैं ने तुम्हें चेता दिया; आगे तुम जानो, तुम्हारा काम जाने!

यह कह कर रुक्मिणी वहाँ से चली गई।

वकील साहब सैर करके लौटे तो निर्मला ने तुरन्त यह विषय छेड़ दिया— मन्साराम से वह आजकल थोड़ी देर अङ्गरेज़ी पढ़ती थी। उसके चले जाने पर फिर उसके पढ़ने का हरज न होगा? दूसरा कौन पढ़ाएगा? वकील साहब को अब तक यह बात न मालूम थी। निर्मला ने सोचा था कि जब कुछ अङ्गरेजी का अभ्यास हो जायगा, तो वकील साहब को एक दिन अङ्गरेजी में बातें करके चकित कर दूँँगी। कुछ थोड़ा सा ज्ञान तो उसे अपने भाइयों ही से