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सातवां परिच्छेद
 

भी कोई नहीं;और हो भी तो उसे संह सकता हूँ। मैं कल से चला जाऊँगा। हाँ,अगर जगह न खाली हुई,तो मजबूरी है। मुन्शी जी वकील थे। समझ गए कि यह लौंडा कोई ऐसा बहाना ढूँढ़ रहा है,जिसमें मुझे वहाँ जाना भी न पड़े;और कोई इल्जाम भी सिर पर न आए।बोले-सब लड़कों के लिए जगह है,तुम्हारे ही लिए जगह न होगी।

मन्साराम-कितने ही लड़कों को जगह नहीं मिली;और वे बाहर किराए के मकानों में पड़े हुए हैं। अभी बोर्डिङ्ग हाउस से एक लड़के का नाम कट गया था,तो पचास अर्जियाँ उस जगह के लिए आई थीं।

वकील साहब ने ज्यादा तर्क-वितर्क करना उचित न समझा। मन्साराम को कल तैयार रहने की आज्ञा देकर आप ने बग्घी तैयार कराई, और सैर करने चले गए। इधर कुछ दिनों से वह शाम को प्रायः सैर करने चले जाया करते थे। किसी अनुभवी प्राणी ने बतलाया था कि दीर्घ जीवन के लिए इससे बढ़ कर कोई मन्त्र नहीं है। उनके जाने के बाद मन्साराम आकर रुक्मिणी से बोला वुआ जी,बाबू जी ने मुझे कल से स्कूल ही में रहने को कहा है। रुक्मिणी ने विस्मित होकर पूछा-क्यों?

मन्सा०-मैं क्या जानूँ। कहने लगे कि तुम यहाँ आवारों की तरह इधर-उधर फिरा करते हो।।

रुक्मि०-तूने कहा कि मैं कहीं नहीं जाता? मन्सा०-कहा क्यों नहीं,मगर जब वह मानें भी!