यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
पहला परिच्छेद
 


निर्मला मुस्करा कर बोली--तुझे अम्माँ न जाने देंगी।

कृष्णा--तो मैं भी तुम्हें न जाने दूँगी। तुम अम्माँ से कह क्यों नहीं देतीं कि मैं न जाऊँगी?

निर्मला--कह तो रही हूँ, कोई सुनता है?

कृष्णा--तो क्या यह तुम्हारा घर नहीं है?

निर्मला--नहीं; मेरा घर होता तो कोई क्यों ज़बरदस्ती निकाल देता।

कृष्णा--इसी तरह किसी दिन मैं भी निकाल दिया जायगा?

निर्मला--और नहीं क्या तू वैठी रहेगी? हम लड़कियाँ हैं, हमारा घर कहीं नहीं होता।

कृष्णा--चन्दर भी निकाल दिया जायगा?

निर्मला--चन्दर तो लड़का है; उसे कौन निकालेगा?

कृष्णा--तो लड़कियाँ बहुत खराब होती होंगी?

निर्मला--खराब न होती; तो घर से भगाई क्यों जातीं।

कृष्णा--चन्दर इतना बदमाश है, उसे कोई नहीं भगाता। हम तुम तो कोई बदमाशी भी नहीं करतीं।

एकाएक चन्दर धम-धम करता हुआ छत पर आ पहुँचा; और निर्मला को देख कर बोला--अच्छा! आप यहाँ बैठी हैं। ओहो! अब तो बाजे बजेंगे, दीदी दुल्हन बनेंगी, पालकी पर चढ़ेगी, ओहो! ओहो!!

चन्दर का पूरा नाम चन्द्रभानु सिन्हा था। निर्मला से तीन साल छोटा; और कृष्णा से दो साल बड़ा था।