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पांँचवांँ परिच्छेद
 

की देख-भाल के लिए एक औरत की जरूरत भी थी, रख लिया; लेकिन इसके यह माने नहीं हैं कि वह तुम्हारे ऊपर शासन करें।

निर्मला ने फिर कहा-लड़कों को सिखा देती हैं कि जाकर माँ से पैसे माँगो, कभी कुछ-कभी कुछ। लड़के आकर मेरी जान खाते हैं। घड़ी भर लेटना मुश्किल हो जाता है। डाटती हूँ, तो वह ऑखें लाल-पीली करके दौड़ती हैं। मुझे समझती हैं कि लड़कों को देख कर जलती है। ईश्वर जानते होंगे कि मैं बच्चों को कितना प्यार करती हूँ। आखिर मेरे ही बच्चे तो हैं।मुझे उनसे क्यों जलन होने लगी।

तोताराम क्रोध से काँप उठे। वोले-तुम्हें जो लड़का दिक़ करे, उसे पीट दिया करो। मैं भी देखता हूँ कि लौंडे शरीर हो गए हैं। मन्साराम को तो मैं बोर्डिङ्ग हाउस में भेज दूंगा । बाक्नी दोनों को आज ही ठीक किए देता हूँ।

उस वक्त तोताराम कचहरी जा रहे थे । डाट-डपट करने का मौका न था; लेकिन कचहरी से लौटते ही उन्होंने घर में आकर रुक्मिणी से कहा-क्यों वहिन, तुम्हें इस घर में रहना है या नहीं। अगर रहना है, तो शान्त होकर रहो। यह क्या कि दूसरों का रहना मुश्किल कर दो।

रुक्मिणी समझ गई कि बहू ने अपना वार किया; पर वह दवने वाली औरत न थी । एक तो उम्र में बड़ी, तिस पर इसी घर की सेवा में जिन्दगी काट दी थी। किसकी मजाल थी कि उन्हें वेदखल कर दे। उन्हें भाई की इस क्षुद्रता पर आश्चर्य हुआ ।