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निर्मला
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वाले तो खा-पीकर चम्पत हुए। अब किसी की सूरत भी नहीं दिखाई देती; बल्कि और मुझसे बुरा मानते हैं कि हमें निकाल दिया। जो बात अपने बस के बाहर है, उसके लिए हाथ ही क्यों फैलाऊँ। सन्तान किसको प्यारी नहीं होती? कौन उसे सुखी नहीं देखना चाहता; पर जब अपना क़ाबू भी हो। आप ईश्वर का नाम लेकर वकील साहब को टीका कर आइए। आयु कुछ अधिक है; लेकिन मरना-जीना विधि के हाथ है। पैंतीस साल का आदमी बुड्ढा नहीं कहलाता। अगर लड़की के भाग्य में सुख भोगना बदा है, तो जहाँ जायगी सुखी रहेगी; दुख भोगना है, तो जहाँ जायगी दुख झेलेगी। हमारी निर्मला को बच्चों से प्रेम है। उनके बच्चों को अपना समझेगी। आप शुभ-मुहूर्त देख कर टीका कर आएँ!!