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निर्मला
३६
 


ज्यादा मिलने की आशा होगी। अब जो वकील साहब का देहान्त हो गया, तो तरह-तरह के हीले हवाले करने लगे, यह भलमन्सी नहीं, छोटापन है। इसका इलज़ाम भी तुम्हारे ही सिर है। मैं अब शादी-ब्याह के नगीच न जाऊँगी। तुम्हारी जैसी इच्छा हो, करो। ढोंगी आदमियों से मुझे चिढ़ है। जो बात करो, सफाई से करो; बुरा हो या अच्छा। 'हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और' वाली नीति पर चलना तुम्हें शोभा नहीं देता। बोलो, अब भी वहाँ शादी करते हो या नहीं ?

भाल०--जब मैं बेईमान, दगाबाज़ और झूठा ठहरा, तो मुझ से पूछना ही क्या। मगर खूब पहचानती हो आदमियों को! क्या कहना है, तुम्हारी इस सूझ-बूझ की बलैयाँ ले ले।

रंगीली--हो बड़े हयादार, अब भी नहीं शर्माते। ईमान से कहो, मैं ने बात ताड़ ली कि नहीं?

भाल०--अजी जाओ, वह दूसरी औरतें होती हैं, जो मर्दों को पहचानती हैं। अब तक मैं भी यही समझता था कि औरतों की दृष्टि बड़ी सूक्ष्म होती है। पर आज वह विश्वास उठ गया, और महात्माओं ने औरतों के विषय में जो तत्त्व की बातें कही हैं, उनको मानना पड़ा।

रंगीली--जरा आईने में सूरत तो देख आओ, तुम्हें मेरी कसम है! जरा देख लो, कितना झपे हुए हो।

भाल०--सच कहना, किवना झेंपा हुआ हूँ।