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निर्मला
२८
 


बुरा! मेरा बस चले, तो दहेज लेने वालों और दहेज देने वालों दोनों ही को गोली मार दूँ। हाँ साहब, साक गोली मार दूँ; फिर चाहें फाँसी ही क्यों न हो जाय । पूछो, आप लड़के का विवाह करते हैं कि उसे बेचते हैं? अगर आप को लड़के की शादी में दिल खोल कर खर्च करने का अरमान है, तो शौक से खर्च कीजिए; लेकिन जो कुछ कीजिए अपने बल पर। यह क्या कि कन्या के पिता का गला रेतिए। नीचता है, घोर नीचता। मेरा बस चले तो इन पाजियों को गोली मार दूँ!

मोटे०--धन्य हो सरकार, भगवान् ने आपको बड़ी बुद्धि दी है। यह धर्म का प्रताप है। मालकिन की इच्छा है कि विवाह का मुहूर्त वही रहे; और तो उन्होंने सारी बातें पत्र में लिख ही दी हैं। बस, अब आप ही उबारें, तो हम उबर सकते हैं। इस तरह तो बारात में जितने सज्जन जायँगे उनकी सेवा-सत्कार हम करेंगे ही; लेकिन परिस्थिति अब बहुत बदल गई है सरकार, कोई करने-धरने वाला नहीं है। बस, ऐसी बात कीजिए कि वकील साहब के नाम पर बट्टा न लगे।


भालचन्द्र एक मिनिट तक आँखें बन्द किए बैठे रहेः फिर एक लम्बी साँस खींच कर बोले--ईश्वर को मञ्जूर ही न था कि वह लक्ष्मी मेरे घर आती; नहीं तो क्या यह वज्र गिरता? सारे मन्सूबे खाक में मिल गए। फूला न समाता था कि वह शुभ अवसर निकट आ रहा है; पर क्या जानता था कि ईश्वर के दरबार में कुछ और षड्यन्त्र रचा जा रहा है। मरने वाले की याद ही