यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२८५
पच्चीसवाँ परिच्छेद
 


वह सिर से पाँच तक काँप उठी;और बिना कुछ कहे-सुने सिंहनी की भाँति क्रोध में भरी हुई द्वार की ओर चली। निर्मला ने उसे रोकना चाहा;पर न पा सकी। देखते-देखते वह सड़क पर आ गई और घर की ओर चली। तब निर्मला वहीं भूमि पर बैठ गई और फूट-फूट कर रोने लगी!