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निर्मला
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निर्मला-घी के लिए गए-गए तो तुम ग्यारह बजे लौटे हो,लकड़ी के लिए जाओगे तो साँझ ही कर दोगे!'तुम्हारे बाबू जी,विना खाए ही चले गए। तुम्हें इतनी देर लगाना था,तो पहले ही क्यों न कह दिया। जाते हो लकड़ी के लिए?

सियाराम अब अपने को न सँभाल सका।झल्ला कर बोला-लकड़ी किसी और से मँगाइए।मुझे स्कूल जाने की देर हो रही है।

निर्मला-खाना न खाओगे?

सिया-न खाऊँगा।

निर्मला-मैं खाना बनाने को तैयार हूँ। हाँ,लकड़ी लाने नहीं जा सकती। सिया०-भुगी को क्यों नहीं भेजती?

निर्मला-भुङ्गी का लाया सौदा क्या तुमने कभी देखा। नहीं है?

सिया-तो मैं तो इस वक्त न जाऊँगा।

निर्मला-फिर मुझे दोप न देना।

सियाराम कई दिनों से स्कूल नहीं गया था। बाजार-हाट के मारे उसे किताबें देखने का समय ही न मिलता था। स्कूल जाकर झिड़कियाँ खाने,वैञ्च पर खड़े होने या ऊँची टोपी देने के सिवा और क्या मिलता। वह घर से कितावें लेकर चलता; पर शहर के बाहर जा कर किसी