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निर्मला
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कर सकता। कोई बाहर का आदमी होता, तो उसे पुलिस और कानून के शिकजे में कसते। अपने लड़के को क्या करें? सच कहा है-आदमी हारता है, तो अपने लड़कों ही से!

एक दिन डॉक्टर सिन्हा ने जियाराम को बुला कर समझाना शुरू किया। जियाराम उनका अदब करता था। चुपचाप बैठा सुनता रहा। जब डॉक्टर साहब ने अन्त में पूछा, आखिर तुम चाहते क्या हो? तो वह बोला-साफ-साफ कह दूं न? बुरा तो न मानिएगा?

सिन्हा-नहीं, जो कुछ तुम्हारे दिल में हो, साफ-साफ कह दो।

जियाराम-तो सुनिए, जब से भैया मरे हैं, मुझे पिता जी की सूरत देख कर क्रोध आता है।मुझे ऐसा मालूम होता है कि इन्हीं ने भैया की हत्या की है; और एक दिन मौका पाकर हम दोनों भाइयों की भी हत्या करेंगे। अगर इनकी यह इच्छा न होती, तो ब्याह ही क्यों करते?

डॉक्टर साहब ने बड़ी मुश्किल से हँसी रोक कर कहा-तुम्हारी हत्या करने के लिए उन्हें व्याह करने की क्या जरूरत थी? यह बात मेरी समझ में नहीं आई। बिना विवाह किए भी तो वह हत्या कर सकते थे!

जियाराम-कभी नहीं! उस वक्त तो उनका दिल ही कुछ और था- हम लोगों पर जान देते थे। अब मुँह तक नहीं देखना चाहते। इनकी यही इच्छा है कि उन दोनों प्राणियों के सिवा घर में और